मंगलवार, 15 नवंबर 2011

आर्टिलरी गन

लगातार बढ़ रही जनसंख्या और वाहनों की कतारों को देखते हुए सड़के कम पड़ रही है. भीड़ इतनी हो गई है कि सड़कें सकरी गलियों का अहसास कराने लगी है. ऐसे में सड़क चौड़ीकरण करना जरूरी हो रहा है. अभी कल ही छत्तीसगढ़ के अनुपम गार्डन के पास लगे बरसों पुराने इमली के पेड़ को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर काट दिया गया ताकि लोगों के चलने के लिए तीन से चार फीट जमीन और मिल जाए. इसी सड़क में अभी कुछ दिनों पहले भी दो पेड़ों को काट कर अलग किया गया है जिसके निशान अभी भी देखे जा सकते हैं क्योंकि जिस चौड़ीकरण के नाम पर इन दो पेड़ों को काटा गया उस स्थल में सिर्फ बजरी गिट्टी डाल कर छोड़ दिया गया है और लोगों को अब वहां से सावधानी के साथ अपने वाहन चलाने पड़ रहे हैं. इसी अनुपम गार्डन के पास नगरनिगम द्वारा एक एतिहासिक तोप को रखा गया है, परंतु निगम की लापरवाही ही कहे कि अब तक उसका उदधाटन नहीं कराये जाने के कारण यह क्या है किस सन् का है? किसी के समझ में नहीं आ रहा है. स्थिति यह है कि धुल, गर्मी, बरसात में खुले आकाश के नीचे होने के कारण जंग लग कर सड़ रहा है. अब पता चला है कि जबलपुर सैनिक हेडक्वार्टर से दो आर्टिलरी गन को मंगाया गया था, जो निगम मुख्यालय भवन में पहुंच गया है. मालूम हुआ है कि इसे निगम मुख्यालय भवन में रखा जाएगा. मुझे पता है ऐतिहासिक चीजों का संकलन करने का हमें शौक तो है, पर उसकी उचित देखभाल करने की जिम्मेदारी निभाने की हममे क्षमता नहीं है. आज जरूर यह हमारे कौतुहल को बढ़ाने और उसे जानने की जिज्ञासा को शांत करेगा पर इसका भविष्य में क्या होगा कहा नहीं जा सकता. हमने ऐसे ही अनेक महापुरूषों के आदमकद मूर्तियां बनवायी और उसे विभिन्न चौक-चौराहों में लगाया, पर जब यातायात का दबाव बढ़ा तो इन महापुरूषों को सड़क के किनारे ऐसी जगह में पुन:स्थापित कर दिया, जहां किसी की नजर भी नहीं जाती और नजर पड़ भी गई तो आप शर्म से अपनी आँखे झुका लेंगे क्योंकि वहां पर पुरूषों ने मुत्रालय का काम लेना शुरू कर दिया है. क्या इन आर्टिलरी गनों की हमें आवश्यकता है? क्या इसकी समस्त देखरेख-रखरखाव,उचित जानकारी देने तख्ती लगायी जाएगी? क्या कुछ वर्षों बाद ये हमें किसी कबाड़ में देखने को मिलेंगे? क्या इन गनों को सैनिक मुख्यालय में नहीं रखा जा सकता? या जहां इसकी उपयोगिता है वहां इसे रखे जाने की ओर हमारा दायित्व नहीं बनता?

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