उच्च शिक्षा
देश की व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अंग्रेजी को बनाये रखना आवश्यक है. अगर अंग्रेजी आपको नहीं आती तो छोटी-मोटी नौकरी से संतुष्ट होना पड़ेगा और महिने भर का खर्च उस तनख्वाह की रकम से जोड़-तोड़ कर चलाना होगा. अंग्रेजी उच्च शिक्षा का माध्यम है और उच्च शिक्षा का केन्द्र महानगर है.
अंग्रेजी ने सरकार की इज्जत बचा रखी है यदि ऐसा नहीं हुआ, तो बेरोजगारों की जो लंबी लाइन है वह कमतर हो गयी होती. फिर अफसरों के बेटे-बेटियां क्या करते? उच्च पद इन अंग्रेजी के ज्ञाताओं के नाम रिजर्व है. आप और हम अनावश्यक आरक्षण की मांग कर सभा, धरना और जुलूस निकाल कर अपना समय खराब कर रहे हैं और पुलिस के डंडे की मार से चोटिल हो रहे हैं.
सभी पार्टियों के नेता अपने भाषणों में एक रटा रटाया वाक्य कहते हैं-हमारे लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं है. हम चाहते हैं हर तबके का बच्चा पढ़े-लिखे. शिक्षा से बड़ा कोई ज्ञान नहीं है. शिक्षित समाज ही देश को प्रगति की ओर ले जाता है. कोरी बातें हैं. गांव-गांव में स्कूल खोले गये हैं, जहां अंग्रेजी की शिक्षा देने कोई शिक्षक नहीं है, फिर ऐसी शिक्षा का क्या लाभ? आबेदन अंग्रेजी में, फाइल में टिप्पणी अंग्रेजी में. अधिकारियों की बैठक में चर्चा अंग्रेजी में. वहां आपका क्या काम? भोकवा (नासमझ) की तरह आपकी उपस्थिति की क्या जरूरत?
अधिकारी का बेटा और उससे छोटे पद के कर्मचारियों का बेटा क्या एक ही कक्षा में पढ़ेंगे? ऐसा कैसे हो सकता है, जिस बाप ने (अधिकारी) अपने मातहत को अंग्रेजी में गाली देकर खुद को दिनभर के लिए तरोताजा कर लिया हो उसी का बेटा अधिकारी के बेटे के साथ एक ही लाइन में बैठ कर पढ़ेगा, कदापि नहीं?
अंग्रेजी उच्च शिक्षा का माध्यम है. अंगे्रजी का ज्ञान नहीं तो उच्च शिक्षा नहीं रहेगी. उच्च शिक्षा ही समाज में ऊंच-नीच बनाये रखने का सटिक माध्यम है. अंग्रेजी आपने नहीं पढ़ी या आपके भेजे में नहीं घुसा तो ये आपका दोष. बाद में आप खुद पछतावा करेंगे कि क्यों नहीं सीखी. आप हिन्ही भाषी हैं, तो आपकी अपनी अलग जमात है, जिनके बीच आप उठते-बैठते हैं और खुद को सहज महसूस करते हैं वरना किसी ने दो लाइन भी अंग्रेजी की बोली आप अपलक उसे निहारते रहते हैं. उसकी बात से सहमत नहीं होने पर भी अपनी मुंडी ( सिर) हिला देते हैं क्योंकि आपमें उससे बहस करने का माद्दा नहीं है.
जैसे ही अंग्रेजी हटी तो सभी लोग बराबर हो जायेंगे. भारत में जनतंत्र हो जाएगा. अंग्रेजी ही भारतीय संस्कृति का रक्षक है. जनतंत्र आते ही आम लोगों का तीसरा नेत्र खुल जायेगा और जब तीसरा नेत्र खुलता है, तो प्रलय आने से कोई नहीं रोक सकता. अंग्रेजी के कारण ही अनेक गुप्त बातों को सार्वजनिक रूप से कहा जा करता है. किसी को कुछ समझ ही नहीं आता. अपका ड्राइवर, सहायक एक कान से इस अटपटी भाषा को सुन कर अनसुना कर देता है और खुश होता है कि मैं एक ऐसे अधिकारी के साथ कार्यरत हूं, जो रोबिला है, उसकी बात कोई मातहम काट नहीं सकता.
जय हो अंग्रेजी तूने भारत देश को एक नयी दिशा दी है. तेरे कारण ही ज्ञान के भंडार में हम गोते लगा रहे हैं.
शशि परगनिहा
18 मार्च 2013, सोमवार
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सोमवार, 18 मार्च 2013
मंगलवार, 10 जनवरी 2012
आर्यावर्त: जलालगढ़ किला का विकास पर्यटनस्थल रूप में.
आर्यावर्त: जलालगढ़ किला का विकास पर्यटनस्थल रूप में. जलालगढ़ के किले का विकास किये जाने का निर्णय स्वागतेय है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोटी-कोटी बधाई. भारत के इतिहास को संजो कर रखना जरूरी है.
गुरुवार, 17 नवंबर 2011
उधार की रोशनी
आमजन से नगर पालिका एवं निगम जल, मल टैक्स के साथ मकान, प्लाट या दुकानों से मनमाना किराया प्रति वर्ष वसूल रही है, लेकिन जन सुविधा देने के मामले में फिसड्डूी साबित हो रही है. जगह-जगह गंदगी, नालियों में बजबजाते कचरे तक साफ कराने में असफल रायपुर नगर निगम प्रति साल टैक्स का भार हम पर बढ़ा कर उसे वसूलने में कतई कोताही नहीं बरत रही है. नवम्बर के महिने में भी अनेक मोहल्लों में पानी की दिक्कत बनी हुई है और उसकी आपूर्ति करने में नगर निगम टैंकरों के लिए डीजल की कमी बता कर पानी देने में आना-कानी कर रही है. ऐसे में हम या तो लाचार हैं या हमारा आक्रोश भड़कने लगता है. जब इनसे बात की जाती है, तो सिर्फ आश्वासन मिलता है, देख रहे हैं. शीध्र ही व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी. यदि हम टैक्स देने में विलम्ब करते हैं, तो तत्काल निगम अमला सक्रिय हो, हमें परेशान करने में देरी नहीं लगाता, पर इसी निगम ने विद्युत मंडल को करोड़ों का रूपया विद्युत बिल का नहीं दिया है.
ऊपर ढोल अंदर पोल-रायपुर नगर निगम प्रति दिन नगर निगम मुख्यालय और इसके अधिन आने वाले क्षेत्रों में अनावश्यक विद्युत की खपत करता है. कभी देखें दिन में भी सड़कों की लाईटें जलती रहती है, तो जिस कमरे में कोई ना हो वहां भी एसी, पंखा और लाईटें जगमगाती रहती है. इन पर यदि कंट्रोल किया जाए और लापरवाही ना बरती जाए तो विद्युत बचायी जा सकती है. लेकिन ऐसा ना हो रहा है ना होगा, इसी के चलते रायपु नगर निगम को विद्युत मंडल को एक करोड़ रूपया बिजली बिल की राशि देना है. मजे की बात यह है कि इस मामले में विद्युत मंडल भी बील वसुलने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है.
बुधवार, 16 नवंबर 2011
शोषित कृषक
छत्तीसगढ़ सरकार चाहती है कि यहां के कृषकों का भला हो. वे सिर्फ धान की खेती पर निर्भर ना रहें वरन अन्य खेती की तरफ जाएं और अच्छी उपज ले कर
खुशहाल जिन्दगी ासर करें. सोच तो ाहुत ही अच्छी है पर क्या हकीकत में ऐसा हो रहा है?
कृषकों को राज्य ाीज निगम ाीज उपलध कराती है, लेकिन आपको पता है, इन्हें जो ाीज दिए जाते हैं उसकी कीमत क्या होती है? छत्तीसगढ़ शासन ने उद्यानिकी
विभाग के माध्यम से किसानों को पोषित योजना के तहत केला, आलू, ाागवानी, उद्यानिकी प्रशिक्षण देती है. योजना में दम है, लेकिन यदि कोई किसान इन
योजनाओं से प्रभावित हो उसकी खेती करने के लिए इनसे ाीज खरीदे तो उसे आलू के ाीज 28 रूपये में एक किलो के भाव से खरीदना पड़ेगा. गुलाा की खेती
करनी हो तो एक कलम 16.85 रूपये देकर खरीदनी पड़ेगी. गेंदा ाीज का छोटा पैकेट, जिसमें 100 दाने होते हैं, वह 126 रुपये देकर खरीदना पड़ेगा. आ यही
ाीज आप खुले ााजार मेंं खरीदते हैं तो इससे कई गुना सस्ते में मिल जाएगा. हालात का मारा किसान क्या इतने महंगे दाम में इन ाीजों को खरीद सकता है? जाकि
ााजार में गुलाा की एक कलम आपको 2 रूपये में आसानी से उपलध होता है.
इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार, जा से सत्ता चला रही है उससे पहले अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किसानों का हमदर्द ान 270 रूपये प्रति क्विंटल ोनस देने की ाात
कही थी. ोनस नहीं देने के ााद भी हर साल रमन सरकार किसानों को ोनस देने की ाात कहती है और जा ोनस देने का समय आता है, तो मौन साध लेती है.
कभी 220 रूपये तो कभी 50 रूपये ोनस देने का सजााग दिखा कर रमन सरकार ने आ तक किसानों के प्रति क्विंटल के हिसाा से 760 रूपये हजम कर गई
है.
हर साल अन्य राज्यों से धान को यहां अवैध रूप से लाकर ोचा जाता है और उसे छत्तीसगढ़ सरकार अपनी उपलधि ाता कर वाहवाही लूटती है. जाकि यहां के
किसानों के धान ािकने के लिए खुले मैदान में पड़े रहते हैं और कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी इससे आॅख मंूदे देखते रहते है. वह किसान पूरे परिवार के
साथ अपनी मेहनत के फल की हिफायत के लिए खुले आकाश के नीचे अनेक रात काट देता है, लेकिन अन्य राज्य से आये धान को रात के अंधेरे में लाकर
आनन-फानन में तौल कर उसकी परची काट कर दे दी जाती है. क्या एक गरीा किसान की मेहनत को इस तरह से ािखरते हुए देख कर किसी की आॅखों से आॅसू
नहीं छलकते? इन्हीं के खून-पसीने से घरती का सीना फाड़ कर उपजाए फसल को आप प्रति दिन अपने आहार में शामिल करते हैं और स्वस्थ्य और तंदरूस्त रहते
हैं. क्या गांव में ासे इन खेतिहर मजदूरों और किसानों को छोटे-छोटे मकानें में अपने नाक पोछते ाच्चों और पत्नी की तार-तार हुई साड़ी में देख कर जरा भी रहम
नहीं आता?
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निशाने पर वन्य प्राणी
एक साल के भीतर अर्थात दिसमर 2010 से नवमर 2011 के ाीच एक ााध और दो ााघिनों का शिकार कवर्धा, राजनांदगांव और पंडरिया क्षेत्र में किया जा
चुका है. आपको यह ाताना जरूरी है कि ये पूरा क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य मंत्री रमन सिंह का विधान सभा क्षेत्र है और यही उनका गृह ग्राम है. ााघ एवं वन्य
जीवों की सुरक्षा के लिए राज्य में ााघ ाचाओ मुहिम चलाया जा रहा है, लेकिन इस तरह की घटनाएं लगातार होने से वन विभाग पर संदेह की सुई घुमने लगी है. सन्
2010 की गणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में इन्द्रावती टाइगर रिजर्व को छोड़ दें तो 24 ााघों के होने की जानकारी है. ऐसे में लगता है कि हम इनकी संख्या तो ाढ़ा
नहीं पा रहे, पर इन्हें घटाने में अवश्य लग गये हैं.
जानकारी अनुसार ााघों ने कान्हा से अचानकमार के ाीच नया कॉरीडोर ाना लिया है, जहां वन विभाग ने गुप्त कैमरे लगा रखे हैं, लेकिन गस्त की आ तक कोई
व्यवस्था नहीं की गई है, ऐसे में लाखों में ािकने वाले इन ााघों का शिकार करने वालों की चल पड़ी है. वे इन्हें मारने के ााद उनके ााल, दांत और नाखून को पहले
निकाल कर अपने साथ ले जाते हैं और ााघ को वहीं खुले में छोड़ जाते है, ताकि जा उसका मांस सड़-गल कर या तो नष्ट हो जाए या अन्य जानवर उसका भक्षण
कर लें. पश्चात उसके खाल को अलग से ोच कर लाखों कमा लें. इस काम में उनका वन विभाग का अमला भी चोरी-छिपे साथ देता है.
वन्य प्राणी के शरीर का हर हिस्सा ोश-कीमती होता है. इनके शरीर के कुछ हिस्सों की न केवल भारत वरन विदेशों में भारी मांग है और इसी कारण इन निरीह प्राणी
को ो-मौत मारने में शिकारियों को जरा भी खौफ नहीं होता. यह ााघिन पिछले तीन दिनों से कवर्धा भोरमदेव सेंचुरी मंदिर से 15 किलो मीटर दूर मरी पड़ी र्थी, जिसे
देखने के ााद वन विभाग का अमला सक्रिय हुआ. क्या उस क्षेत्र में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी पिछले तीन दिनों से गस्त में नहीं गये थे? क्या इसमें वन
विभाग के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की मिली-भगत थी, कि पहले ााघिन के अंग भंग कर कीमती नाखूनों, ााल और दांत निकाल लिए जाए, फिर मौत
की खार सामने लाए ताकि उसका पोस्टमार्टम हो तो ाहुत सा ाातें का खुलासा आप ही आप उस ााघिन की मौत के साथ दफन हो जाए?
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सामाजिक कार्यकर्ता ानाम विधायक
छत्तीसगढ़ के जशपुर विधायक जगेश्वर राम भगत एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो यह कहने में जरा भी नहीं हिचकते कि मैं पहले क्षेत्रवासियों के लिए सामान्य
सामाजिक कार्यकर्ता हूं फिर राजनैतिक कार्यकर्ता उसके ााद विधायक. ये ऐसे विधायक हैं, जिस क्षेत्र में नक्सली सक्रिय हैं और आये दिन विभिन्न वारदातें होती
रहती हैं. वे प्रतिदिन अपने विधान सभा क्षेत्र का दौरा करने निकलते हैं और वहां के लोगों के सुख-दुख में शामिल होते हैं. उनके साथ ौठना उनकी समस्याओं को
सुनना और उसका अपने स्तर पर समाधान निकालना जैसे कार्य में व्यस्त रहते हैं. इन्हें सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड विधायक ानने के ााद दी गई थी, जिसे सिर्फ
इसलिए निलंाित कर दिया गया, क्योंकि वे उक्त विधायक के साथ ौठकर भोजन ग्रहण कर रहे थे. आ पिछले 6 माह से उनके पास सुरक्षा गार्ड नहीं है. वे इसकी
जानकारी राज्य के मुख्य मंत्री रमन सिंह को दे चुके हैं, पर मुख्य मंत्री इस मामले में मौन हैं.
विधायक भगत कह रहे हैं कि मेरा जिस तरह का कार्य है,उसमें मेरी सुरक्षा का खतरा है. यदि नक्सलियों ने मेरे साथ कुछ किया तो प्रशासन और मुख्य मंत्री जिम्मेदार
होंगे. एक जन प्रतिनिधि जो जन सेवा में लगे हुए हैं, क्या उनकी सुरक्षा आवश्यक नहीं है? क्या राज्य के कर्णधार मुख्य मंत्री को इस ाात की जानकारी होने के
ाावजूद 6 माह से कोई निर्णय नहीं लिया जाना उनकी कमजोरी को सााित नहीं करता? क्या राज्य के गृह मंत्री ने विधायक भगत से इस विषय में कोई चर्चा नहीं
की? क्या गृह मंत्री ने पुलिस उच्चाधिकारियों से विधायक भगत को सुरक्षा गार्ड देने निर्देश नहीं दिया? क्या मंत्रियों की ाात प्रशासन में ौठे उच्चाधिकारी नहीं मानते?
यदि हां तो छत्तीसगढ़ राज्य किन हाथों में है, यह यहां के नागरिकों को सोचने के लिए ााध्य करता है.
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विभाजन की राजनीति
राहुल गांधी ने अपने नाना स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के चुनाव क्षेत्र से उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधान सभा चुनाव का ािगुल ाजा दिया है. इस दौरान उन्होंने वहां
एक सभा को भी संोधित किया और 'महाराष्ट्र में का तक भीख मांगेंगे' कह राजनीतिक सरगर्मी को ाढ़ा दिया है. देश की अन्य पार्टी के नेताओं ने इस पर व्यापक
प्रतिक्रिया दी, पर उ.प्र. की मुख्य मंत्री मायावती ने जो पासा फेंका, जिस पर सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की ोलती ांद हो गई. मायावती ने उ.प्र. को देश का
सासे ाड़ा राज्य ाताते हुए इसे चार भागों में ाांट देने और शीतकालीन सत्र में इस प्रस्ताव को पास करा केन्द्र सरकार के पास भेजने की ाात कह दी है. केन्द्र
सरकार की हालत आ खराा हो रही है. वे इसका तोड़ निकालने की जुगत में लग गये हैं.
मायावती ने इस संवेदनशील मुद्दे को उछाल कर उ.प्र. की अन्य समस्याओं और वहां हुए भ्रष्टाचार को ढकते हुए चतुर राजनीतिक चाल चली है. क्या हमारे देश के
नेता अपनी सत्ता को ानाये रखने इस तरह की धुर्तता करते हुए आम जनता के साथ अन्याय कर सकते हैं? क्या उत्तर प्रदेश का विभाजन होना चाहिए? क्या इस
विभाजन का लाभ वहां के रहवासियों को मिलेगा? क्या जगह-जगह कुकुरमुत्ते की तरह उग आये छुटभइये नेताओं को विभाजन के ााद विधायक ानने का सौभाग्य
मिल जाएगा और वे अपनी मनमानी करना शुरू कर देंगे? क्या इससे क्षेत्र का विकास होगा या वह क्षेत्र और पिछड़ जाएगा?
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