गुरुवार, 17 नवंबर 2011

उधार की रोशनी

आमजन से नगर पालिका एवं निगम जल, मल टैक्स के साथ मकान, प्लाट या दुकानों से मनमाना किराया प्रति वर्ष वसूल रही है, लेकिन जन सुविधा देने के मामले में फिसड्डूी साबित हो रही है. जगह-जगह गंदगी, नालियों में बजबजाते कचरे तक साफ कराने में असफल रायपुर नगर निगम प्रति साल टैक्स का भार हम पर बढ़ा कर उसे वसूलने में कतई कोताही नहीं बरत रही है. नवम्बर के महिने में भी अनेक मोहल्लों में पानी की दिक्कत बनी हुई है और उसकी आपूर्ति करने में नगर निगम टैंकरों के लिए डीजल की कमी बता कर पानी देने में आना-कानी कर रही है. ऐसे में हम या तो लाचार हैं या हमारा आक्रोश भड़कने लगता है. जब इनसे बात की जाती है, तो सिर्फ आश्वासन मिलता है, देख रहे हैं. शीध्र ही व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी. यदि हम टैक्स देने में विलम्ब करते हैं, तो तत्काल निगम अमला सक्रिय हो, हमें परेशान करने में देरी नहीं लगाता, पर इसी निगम ने विद्युत मंडल को करोड़ों का रूपया विद्युत बिल का नहीं दिया है. ऊपर ढोल अंदर पोल-रायपुर नगर निगम प्रति दिन नगर निगम मुख्यालय और इसके अधिन आने वाले क्षेत्रों में अनावश्यक विद्युत की खपत करता है. कभी देखें दिन में भी सड़कों की लाईटें जलती रहती है, तो जिस कमरे में कोई ना हो वहां भी एसी, पंखा और लाईटें जगमगाती रहती है. इन पर यदि कंट्रोल किया जाए और लापरवाही ना बरती जाए तो विद्युत बचायी जा सकती है. लेकिन ऐसा ना हो रहा है ना होगा, इसी के चलते रायपु नगर निगम को विद्युत मंडल को एक करोड़ रूपया बिजली बिल की राशि देना है. मजे की बात यह है कि इस मामले में विद्युत मंडल भी बील वसुलने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है.

बुधवार, 16 नवंबर 2011

शोषित कृषक

छत्तीसगढ़ सरकार चाहती है कि यहां के कृषकों का भला हो. वे सिर्फ धान की खेती पर निर्भर ना रहें वरन अन्य खेती की तरफ जाएं और अच्छी उपज ले कर खुशहाल जिन्दगी ासर करें. सोच तो ाहुत ही अच्छी है पर क्या हकीकत में ऐसा हो रहा है? कृषकों को राज्य ाीज निगम ाीज उपलध कराती है, लेकिन आपको पता है, इन्हें जो ाीज दिए जाते हैं उसकी कीमत क्या होती है? छत्तीसगढ़ शासन ने उद्यानिकी विभाग के माध्यम से किसानों को पोषित योजना के तहत केला, आलू, ाागवानी, उद्यानिकी प्रशिक्षण देती है. योजना में दम है, लेकिन यदि कोई किसान इन योजनाओं से प्रभावित हो उसकी खेती करने के लिए इनसे ाीज खरीदे तो उसे आलू के ाीज 28 रूपये में एक किलो के भाव से खरीदना पड़ेगा. गुलाा की खेती करनी हो तो एक कलम 16.85 रूपये देकर खरीदनी पड़ेगी. गेंदा ाीज का छोटा पैकेट, जिसमें 100 दाने होते हैं, वह 126 रुपये देकर खरीदना पड़ेगा. आ यही ाीज आप खुले ााजार मेंं खरीदते हैं तो इससे कई गुना सस्ते में मिल जाएगा. हालात का मारा किसान क्या इतने महंगे दाम में इन ाीजों को खरीद सकता है? जाकि ााजार में गुलाा की एक कलम आपको 2 रूपये में आसानी से उपलध होता है. इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार, जा से सत्ता चला रही है उससे पहले अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किसानों का हमदर्द ान 270 रूपये प्रति क्विंटल ोनस देने की ाात कही थी. ोनस नहीं देने के ााद भी हर साल रमन सरकार किसानों को ोनस देने की ाात कहती है और जा ोनस देने का समय आता है, तो मौन साध लेती है. कभी 220 रूपये तो कभी 50 रूपये ोनस देने का सजााग दिखा कर रमन सरकार ने आ तक किसानों के प्रति क्विंटल के हिसाा से 760 रूपये हजम कर गई है. हर साल अन्य राज्यों से धान को यहां अवैध रूप से लाकर ोचा जाता है और उसे छत्तीसगढ़ सरकार अपनी उपलधि ाता कर वाहवाही लूटती है. जाकि यहां के किसानों के धान ािकने के लिए खुले मैदान में पड़े रहते हैं और कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी इससे आॅख मंूदे देखते रहते है. वह किसान पूरे परिवार के साथ अपनी मेहनत के फल की हिफायत के लिए खुले आकाश के नीचे अनेक रात काट देता है, लेकिन अन्य राज्य से आये धान को रात के अंधेरे में लाकर आनन-फानन में तौल कर उसकी परची काट कर दे दी जाती है. क्या एक गरीा किसान की मेहनत को इस तरह से ािखरते हुए देख कर किसी की आॅखों से आॅसू नहीं छलकते? इन्हीं के खून-पसीने से घरती का सीना फाड़ कर उपजाए फसल को आप प्रति दिन अपने आहार में शामिल करते हैं और स्वस्थ्य और तंदरूस्त रहते हैं. क्या गांव में ासे इन खेतिहर मजदूरों और किसानों को छोटे-छोटे मकानें में अपने नाक पोछते ाच्चों और पत्नी की तार-तार हुई साड़ी में देख कर जरा भी रहम नहीं आता? ---------------------

निशाने पर वन्य प्राणी

एक साल के भीतर अर्थात दिसमर 2010 से नवमर 2011 के ाीच एक ााध और दो ााघिनों का शिकार कवर्धा, राजनांदगांव और पंडरिया क्षेत्र में किया जा चुका है. आपको यह ाताना जरूरी है कि ये पूरा क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य मंत्री रमन सिंह का विधान सभा क्षेत्र है और यही उनका गृह ग्राम है. ााघ एवं वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए राज्य में ााघ ाचाओ मुहिम चलाया जा रहा है, लेकिन इस तरह की घटनाएं लगातार होने से वन विभाग पर संदेह की सुई घुमने लगी है. सन् 2010 की गणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में इन्द्रावती टाइगर रिजर्व को छोड़ दें तो 24 ााघों के होने की जानकारी है. ऐसे में लगता है कि हम इनकी संख्या तो ाढ़ा नहीं पा रहे, पर इन्हें घटाने में अवश्य लग गये हैं. जानकारी अनुसार ााघों ने कान्हा से अचानकमार के ाीच नया कॉरीडोर ाना लिया है, जहां वन विभाग ने गुप्त कैमरे लगा रखे हैं, लेकिन गस्त की आ तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है, ऐसे में लाखों में ािकने वाले इन ााघों का शिकार करने वालों की चल पड़ी है. वे इन्हें मारने के ााद उनके ााल, दांत और नाखून को पहले निकाल कर अपने साथ ले जाते हैं और ााघ को वहीं खुले में छोड़ जाते है, ताकि जा उसका मांस सड़-गल कर या तो नष्ट हो जाए या अन्य जानवर उसका भक्षण कर लें. पश्चात उसके खाल को अलग से ोच कर लाखों कमा लें. इस काम में उनका वन विभाग का अमला भी चोरी-छिपे साथ देता है. वन्य प्राणी के शरीर का हर हिस्सा ोश-कीमती होता है. इनके शरीर के कुछ हिस्सों की न केवल भारत वरन विदेशों में भारी मांग है और इसी कारण इन निरीह प्राणी को ो-मौत मारने में शिकारियों को जरा भी खौफ नहीं होता. यह ााघिन पिछले तीन दिनों से कवर्धा भोरमदेव सेंचुरी मंदिर से 15 किलो मीटर दूर मरी पड़ी र्थी, जिसे देखने के ााद वन विभाग का अमला सक्रिय हुआ. क्या उस क्षेत्र में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी पिछले तीन दिनों से गस्त में नहीं गये थे? क्या इसमें वन विभाग के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की मिली-भगत थी, कि पहले ााघिन के अंग भंग कर कीमती नाखूनों, ााल और दांत निकाल लिए जाए, फिर मौत की खार सामने लाए ताकि उसका पोस्टमार्टम हो तो ाहुत सा ाातें का खुलासा आप ही आप उस ााघिन की मौत के साथ दफन हो जाए? ------------------

सामाजिक कार्यकर्ता ानाम विधायक

छत्तीसगढ़ के जशपुर विधायक जगेश्वर राम भगत एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो यह कहने में जरा भी नहीं हिचकते कि मैं पहले क्षेत्रवासियों के लिए सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता हूं फिर राजनैतिक कार्यकर्ता उसके ााद विधायक. ये ऐसे विधायक हैं, जिस क्षेत्र में नक्सली सक्रिय हैं और आये दिन विभिन्न वारदातें होती रहती हैं. वे प्रतिदिन अपने विधान सभा क्षेत्र का दौरा करने निकलते हैं और वहां के लोगों के सुख-दुख में शामिल होते हैं. उनके साथ ौठना उनकी समस्याओं को सुनना और उसका अपने स्तर पर समाधान निकालना जैसे कार्य में व्यस्त रहते हैं. इन्हें सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड विधायक ानने के ााद दी गई थी, जिसे सिर्फ इसलिए निलंाित कर दिया गया, क्योंकि वे उक्त विधायक के साथ ौठकर भोजन ग्रहण कर रहे थे. आ पिछले 6 माह से उनके पास सुरक्षा गार्ड नहीं है. वे इसकी जानकारी राज्य के मुख्य मंत्री रमन सिंह को दे चुके हैं, पर मुख्य मंत्री इस मामले में मौन हैं. विधायक भगत कह रहे हैं कि मेरा जिस तरह का कार्य है,उसमें मेरी सुरक्षा का खतरा है. यदि नक्सलियों ने मेरे साथ कुछ किया तो प्रशासन और मुख्य मंत्री जिम्मेदार होंगे. एक जन प्रतिनिधि जो जन सेवा में लगे हुए हैं, क्या उनकी सुरक्षा आवश्यक नहीं है? क्या राज्य के कर्णधार मुख्य मंत्री को इस ाात की जानकारी होने के ाावजूद 6 माह से कोई निर्णय नहीं लिया जाना उनकी कमजोरी को सााित नहीं करता? क्या राज्य के गृह मंत्री ने विधायक भगत से इस विषय में कोई चर्चा नहीं की? क्या गृह मंत्री ने पुलिस उच्चाधिकारियों से विधायक भगत को सुरक्षा गार्ड देने निर्देश नहीं दिया? क्या मंत्रियों की ाात प्रशासन में ौठे उच्चाधिकारी नहीं मानते? यदि हां तो छत्तीसगढ़ राज्य किन हाथों में है, यह यहां के नागरिकों को सोचने के लिए ााध्य करता है. --------------------

विभाजन की राजनीति

राहुल गांधी ने अपने नाना स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के चुनाव क्षेत्र से उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधान सभा चुनाव का ािगुल ाजा दिया है. इस दौरान उन्होंने वहां एक सभा को भी संोधित किया और 'महाराष्ट्र में का तक भीख मांगेंगे' कह राजनीतिक सरगर्मी को ाढ़ा दिया है. देश की अन्य पार्टी के नेताओं ने इस पर व्यापक प्रतिक्रिया दी, पर उ.प्र. की मुख्य मंत्री मायावती ने जो पासा फेंका, जिस पर सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की ोलती ांद हो गई. मायावती ने उ.प्र. को देश का सासे ाड़ा राज्य ाताते हुए इसे चार भागों में ाांट देने और शीतकालीन सत्र में इस प्रस्ताव को पास करा केन्द्र सरकार के पास भेजने की ाात कह दी है. केन्द्र सरकार की हालत आ खराा हो रही है. वे इसका तोड़ निकालने की जुगत में लग गये हैं. मायावती ने इस संवेदनशील मुद्दे को उछाल कर उ.प्र. की अन्य समस्याओं और वहां हुए भ्रष्टाचार को ढकते हुए चतुर राजनीतिक चाल चली है. क्या हमारे देश के नेता अपनी सत्ता को ानाये रखने इस तरह की धुर्तता करते हुए आम जनता के साथ अन्याय कर सकते हैं? क्या उत्तर प्रदेश का विभाजन होना चाहिए? क्या इस विभाजन का लाभ वहां के रहवासियों को मिलेगा? क्या जगह-जगह कुकुरमुत्ते की तरह उग आये छुटभइये नेताओं को विभाजन के ााद विधायक ानने का सौभाग्य मिल जाएगा और वे अपनी मनमानी करना शुरू कर देंगे? क्या इससे क्षेत्र का विकास होगा या वह क्षेत्र और पिछड़ जाएगा? --------------------------

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

घोर अपमान

पारद पादुका पूजन के लिए एक श्लोक है- गृह स्याद् यस्य पूजायां गुरू पारद-पादुका, देवा अपिच तद्भाग्यं धन्यं धन्य तरं विदु. इस सिध्दान्त को अपना आधार बिंदु बना कर चलने वाले ही अपने भक्तों से अपने चरण पर रूपये न्यौछावर करने वालों के सामने उन रूपयों का अपमान करें, तो आप इसे क्या कहेंगे? छ्त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्रीमाली परिवार के नन्द किशोर श्रीमाली ने 8 नवम्बर से 10 नवम्बर तक धर्म चेतना रथ यात्रा के साथ पूर्णोत्सव, ध्यान, साधनाएं, दीक्षाएं, प्रवचन, पूजन का कार्यक्रम आयोजित कराया. इस तीन दिन के कार्यक्रम में वे रायपुर के स्टार होटल सेलिब्रेशन में रूके. इय दौरान उनके भक्तों की भीड़ लगी रही. उनसे प्रत्यक्ष मिलने की भी होड़ लगी रही. इन्हीं भक्तों ने गुरू के चरणों में न केवल अपने शीष नवाये वरण आरती की थाली में चढ़ावा चढ़ाने या कहें मंदिर में भगवान के चरणों में रूपये चढ़ाने की परम्परा का निर्वाह करते हुए नन्द किशोर श्रीमाली के चरणों में रूपये अपनी श्रध्दानुसार रखे, तब इन नन्द किशोर श्रीमाली ने जो किया वह मेरे गले नहीं उतर रही है. उन्होंने अपने पैरों के नीचे इन रूपयों को दबा कर रख लिया. क्या ऐसा धन लक्ष्मी के साथ हिन्दु परिवार कर सकता है? हमारी भारतीय संस्कृकि के अनुसार जब परिवार में एक बच्चा शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में आता है, तो उसका तिलक लगा कर एवं पुस्तक, कलम की पूजा की जाती है. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि वह ज्ञानी बने और उस प्राप्त ज्ञान से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषक करने के काबिल बने. हम गलती से भी किसी कापी, पुस्तक या पेपर को ही पैर से छू लेते हैं तो उस गलती के लिए क्षमा मांगते हैं. यह हमारी संस्कृति की देन है. ऐसा संस्कार हमें मिला हो और जो स्वयं को ज्ञानी बता कर कोई व्यक्ति आपकी आखों के सामने ऐसा कर रहा हो तो क्या आप उन सज्जन के समक्ष नतमस्तक होंगे? क्या आपको ग्लानी नहीं होगी कि ये कैसा धर्म के नाम पर पाखंड कर रहा है? क्योंकि श्रीमाली परिवार श्री निखिलेश्वरानंदजी के नाम पर विगत दो से तीन पीढ़ी से, जिसमें नारायण दत्त श्रीमाली, कैलाश चन्द्र श्रीमाली, अरविंद श्रीमाली और नंद किशोर श्रीमाली शामिल हैं, अपनी पत्रिका के साथ कुण्डली जागरण दीक्षा, तंत्र-मंत्र कवच, समय दीक्षा, ज्ञाल दीक्षा, जीवन मार्ग दीक्षा, शांभवी दीक्षा, विद्या दीक्षा, शिष्या दीक्षा, धन्वंतरि दीक्षा, सहित दुर्लभ साधनाए- पुष्पदेहा अप्सरा साधना, सवत्रजन वशीकरण प्रयोग, कामदेव रति साधना, गृहस्थ जीवन की आवश्यकता साधना, गृह निवारण प्रयोग, स्वयंवर अप्सरा साधना, विश्व की अप्रतिम साधना-दूर श्रवण साधना, मनोवांछित पदार्थ पाईये- शून्य साधना से, संतान प्राप्ति का अनुभूत प्रयोग-पष्ठी देवी साधना और अद्श्य होने का गोपनीय प्रयोग-पारद गुटिका द्वारा के अलावा 24 प्रकार की सिध्दि और साधना की पुस्तकें बेचने का कार्य में लगी हुई है. क्या ऐसे कार्य में लगे व्यक्ति विशेष के प्रति आपकी श्रध्दा बनी रह सकती है?

बच्चे मन के सच्चे

बाल दिवस के दिन ही क्यों हमें बच्चों का ध्यान आ जाता है. साल भर हमारी इन बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं होता और जब हम जागते हैं, तो ख्याल आता है कि बच्चों के यह खेलने-कूदने के दिन हैं. वे जितना खेल में ध्यान देंगे उनमें उतनी ही स्फूर्ति और ताकत बनी रहेगी. शिक्षा विभाग ने भी एक कानून बना रखा है कि जहां भी स्कूल हों वहां खेल के मैदान अवश्य हों. ठीक ऐसे ही यदि कोई कालोनी डेव्लप कर रहा हो, तो उन्हें भी हर प्लान के साथ गार्डन के लिए जगह छोड़ कर रखना होगा और उसे बच्चों के लिए विशेष तौर पर तैयार करना होगा, लेकिन स्कूलों में इन खेल मैदानों की क्या स्थिति है, यह हम सभी जानते हैं. मैदान के नाम पर जो जमीन है वह ना तो समतल है ना ही स्कूलों में खेल सामग्री या खेल शिक्षक हैं. यह जरूर देखा गया है कि जैसे ही बरसात होती है इस उबड़-खाबड़ खेल मैदान में तालाब बन जाता है और वहां बच्चे शिक्षक की अनुपस्थिति में छप-छप खेल कर घर लौट आते हैं. वैसा ही हाल कालोनियों का है. उनके द्वारा बनाए गये नक्शे में जरूर गार्डन के लिए जगह छोड़ी जाती है और जब कालोनी डेव्लप हो जाती है तब लोगों की उस कालोनी में स्थान की मांग बढ़ती है, तो गार्डन की जमीन को बेच कर कालोनाईजर अपनी जेब गरम कर लेता है. ऐसे में ये नन्हे बच्चे या तो अपने घरों की छत में खेलने मजबूर होते हैं या फिर सड़कों को घेर कर कुछ समय के लिए क्रिकेट खेल कर अपना मन बहला लेते हैं. इनके खेलने पर मां-बाप की भी पाबंदी रहती है कि इस बच्चे के साथ ही खेलें या इसके साथ नहीं खेलें, तब बच्चा या तो टी.वी. से जा चिपकता या फिर कम्प्यूटर में गेम खेल टाइम पास करता है. क्या 14 नवम्बर के दिन जिसे हम बाल दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाते हैं उसी दिन हमारे नेताओं की चेतना जागृत होगी? वे क्या हर साल इन बच्चों को सिर्फ कापी-पेन, फल या स्कूलों में विभिन्न स्पर्धा आयोजित करा इन्हें पुरस्कृत कर अपनी जिम्मेदारी से फारिग हो जाऐंगे? दूसरे दिन इन मासूम बच्चों के साथ फोटो सहित अखबारों में छप कर खुश होंगे कि हमने बच्चों के लिए ये किया वो किया. क्या हमारी नैतिक जिम्मेदारी इस एक दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन के साथ समाप्त हो जाती है?

आर्टिलरी गन

लगातार बढ़ रही जनसंख्या और वाहनों की कतारों को देखते हुए सड़के कम पड़ रही है. भीड़ इतनी हो गई है कि सड़कें सकरी गलियों का अहसास कराने लगी है. ऐसे में सड़क चौड़ीकरण करना जरूरी हो रहा है. अभी कल ही छत्तीसगढ़ के अनुपम गार्डन के पास लगे बरसों पुराने इमली के पेड़ को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर काट दिया गया ताकि लोगों के चलने के लिए तीन से चार फीट जमीन और मिल जाए. इसी सड़क में अभी कुछ दिनों पहले भी दो पेड़ों को काट कर अलग किया गया है जिसके निशान अभी भी देखे जा सकते हैं क्योंकि जिस चौड़ीकरण के नाम पर इन दो पेड़ों को काटा गया उस स्थल में सिर्फ बजरी गिट्टी डाल कर छोड़ दिया गया है और लोगों को अब वहां से सावधानी के साथ अपने वाहन चलाने पड़ रहे हैं. इसी अनुपम गार्डन के पास नगरनिगम द्वारा एक एतिहासिक तोप को रखा गया है, परंतु निगम की लापरवाही ही कहे कि अब तक उसका उदधाटन नहीं कराये जाने के कारण यह क्या है किस सन् का है? किसी के समझ में नहीं आ रहा है. स्थिति यह है कि धुल, गर्मी, बरसात में खुले आकाश के नीचे होने के कारण जंग लग कर सड़ रहा है. अब पता चला है कि जबलपुर सैनिक हेडक्वार्टर से दो आर्टिलरी गन को मंगाया गया था, जो निगम मुख्यालय भवन में पहुंच गया है. मालूम हुआ है कि इसे निगम मुख्यालय भवन में रखा जाएगा. मुझे पता है ऐतिहासिक चीजों का संकलन करने का हमें शौक तो है, पर उसकी उचित देखभाल करने की जिम्मेदारी निभाने की हममे क्षमता नहीं है. आज जरूर यह हमारे कौतुहल को बढ़ाने और उसे जानने की जिज्ञासा को शांत करेगा पर इसका भविष्य में क्या होगा कहा नहीं जा सकता. हमने ऐसे ही अनेक महापुरूषों के आदमकद मूर्तियां बनवायी और उसे विभिन्न चौक-चौराहों में लगाया, पर जब यातायात का दबाव बढ़ा तो इन महापुरूषों को सड़क के किनारे ऐसी जगह में पुन:स्थापित कर दिया, जहां किसी की नजर भी नहीं जाती और नजर पड़ भी गई तो आप शर्म से अपनी आँखे झुका लेंगे क्योंकि वहां पर पुरूषों ने मुत्रालय का काम लेना शुरू कर दिया है. क्या इन आर्टिलरी गनों की हमें आवश्यकता है? क्या इसकी समस्त देखरेख-रखरखाव,उचित जानकारी देने तख्ती लगायी जाएगी? क्या कुछ वर्षों बाद ये हमें किसी कबाड़ में देखने को मिलेंगे? क्या इन गनों को सैनिक मुख्यालय में नहीं रखा जा सकता? या जहां इसकी उपयोगिता है वहां इसे रखे जाने की ओर हमारा दायित्व नहीं बनता?

हो रहा भारत निर्माण

कुछ सरकारी विज्ञापन मन को नई ऊर्जा देने में कामयाब होते हैं. इन विज्ञापनों को इस तरह से गीतों में पिरो कर पेश किया जाता है कि वह हमारी जुबान पर बस जाता है. कुछ ऐसा ही हो रहा भारत निर्माण में उपयोग किये गये गीत के साथ. चाहे आप इसे अपने टीवी पर देखें या रेडियो सुनने के दौरान इस विज्ञापन को सुन लें, पर जब सबसे पहली बार जब मैंने इस विज्ञापन को रेडियों में सुना तो अचानक चौंक गई. अरे यह क्या? इसमें एक लाइन है- सड़क बनी कच्चा रस्ता.. इसे सुन कोई भी भारतीय एक बार ठिठकेगा जरूर कि यह क्या कहा जा रहा है. हालाकि वहां कहने का आशय यह है कि जो कच्चे राह थे अब वहां पक्की सड़कें बन गयी है, पर जब इसे आप ध्यान से नहीं सुनेंगे तो आपको लगेगा कि जो सड़कें बनी है वह कच्चा रास्ता बन गया है. दरअसल समाचार बनाने (प्रिंट मीडिया) समाचार दिखाने (इलेक्टॉनिक मीडिया) और विज्ञापन के लिए जिंगल बनाने का एक अलग ही तरीका होता है यदि आप इसमें आप जरा सा भी चुक करते हैं तो वह अपना असर समाप्त तो करता ही है उसके अनेक अर्थ भी निकाले जाते हैं.
करे कोई भरे कोई 8 नवम्बर 2011 का दिन एतिहासिक होते जा रहा है और हो भी क्यों नहीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का जन्मदिन जो था, पर इसके पीछे जो राजनीति हुई वह इतनी सुर्खियां बटोर रही है कि मामला कोर्ट में जा पहुंचा है. 9 नवम्बर को मैंने दो ऐसे कवियों का जिक्र करते हुए एक प्रश्न अपने साथियों के साथ शेयर किया था कि जन्मदिन नहीं मनाने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने 17 लाख से अधिक की राशि इसके कारण बताने कविता के रूप में विज्ञापन छपा कर खर्च कर दिए तो इसके जवाब में एक कविता हमें दूसरी पार्टी के तरफ से पढ़ने को मिल गया. अब अगली लड़ाई इस बात को लेकर है कि दूसरी पार्टी ने क्यों इस कवितानुमा गीत को प्रकाशित करने के लिए सरकारी विज्ञापन एजेंसी के तहत इसे छपाया. दरअसल सरकारी खजाने को इस तरह से वार करने के नाम पर खर्च नहीं किया जा सकता. इस पर संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन होता है. सचमुच यहां गलती हुई है. क्या इस विज्ञापन को प्रकाशित कराने किसी मंत्री से सलाह नहीं ली गयीहोगी? क्या इसके पीछे किसी मंत्री या नेता का हाथ नहीं होगा? क्या इसके लिए वे अधिकारी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने ये विज्ञापन रिलीज करने सरकारी विज्ञापन एजेंसी का इस्तेमाल किया? यदि ऐसा किसी अधिकारी ने किया तो विज्ञापन रिलीज होने से पहले उस नेता या मंत्री ने उस पर अपने हस्ताक्षर तो किये ही होंगे? जो भी हो मंत्री या नेता का नाम आये बगैर इन अधिकारियों पर गाज गिरने वाली है, जिन्हें इस तरह की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.