मंगलवार, 15 नवंबर 2011

करे कोई भरे कोई 8 नवम्बर 2011 का दिन एतिहासिक होते जा रहा है और हो भी क्यों नहीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का जन्मदिन जो था, पर इसके पीछे जो राजनीति हुई वह इतनी सुर्खियां बटोर रही है कि मामला कोर्ट में जा पहुंचा है. 9 नवम्बर को मैंने दो ऐसे कवियों का जिक्र करते हुए एक प्रश्न अपने साथियों के साथ शेयर किया था कि जन्मदिन नहीं मनाने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने 17 लाख से अधिक की राशि इसके कारण बताने कविता के रूप में विज्ञापन छपा कर खर्च कर दिए तो इसके जवाब में एक कविता हमें दूसरी पार्टी के तरफ से पढ़ने को मिल गया. अब अगली लड़ाई इस बात को लेकर है कि दूसरी पार्टी ने क्यों इस कवितानुमा गीत को प्रकाशित करने के लिए सरकारी विज्ञापन एजेंसी के तहत इसे छपाया. दरअसल सरकारी खजाने को इस तरह से वार करने के नाम पर खर्च नहीं किया जा सकता. इस पर संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन होता है. सचमुच यहां गलती हुई है. क्या इस विज्ञापन को प्रकाशित कराने किसी मंत्री से सलाह नहीं ली गयीहोगी? क्या इसके पीछे किसी मंत्री या नेता का हाथ नहीं होगा? क्या इसके लिए वे अधिकारी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने ये विज्ञापन रिलीज करने सरकारी विज्ञापन एजेंसी का इस्तेमाल किया? यदि ऐसा किसी अधिकारी ने किया तो विज्ञापन रिलीज होने से पहले उस नेता या मंत्री ने उस पर अपने हस्ताक्षर तो किये ही होंगे? जो भी हो मंत्री या नेता का नाम आये बगैर इन अधिकारियों पर गाज गिरने वाली है, जिन्हें इस तरह की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.

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